युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज ने पूरा जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया, अगन अगन को नहीं बुझाए, वैर वैर को मारे ना, मानव एकता दिवस 24 अप्रैल को महात्मा विनोद वोहरा जी, मेम्बर इंचार्ज ( मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ ) ने संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) यह तो मेरे खून के प्यासे हैं मेरे गुरसिखों को मार रहे हैं, साधसंगत, तैयारी कर ली कि तन मेरा खाक की ढ़ेरी जान जाए तो जाए परवाह नहीं। 13 अप्रैल 1980 का समागम चंडीगढ़ में हुआ तब बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज ने साध संगत से कहा, कुछ लोग मेरे शरीर को खत्म करने के पीछे पड़े हुए हैं वो समझते हैं कि बाबा गुरबचन सिंह का शरीर हमने खत्म कर दिया तो ये निरंकारी मिशन ही खत्म हो जाएगा परन्तु मैंने तो हजारों हजारों गुरबचन सिंह पैदा कर दिये है मैं तैयार हूँ, वो रात भी आ गई वो दिन भी आ गया वो कारण भी हो गया और उन्होंने अपना बलिदान दिया। मानव एकता दिवस 24 अप्रैल को महात्मा विनोद वोहरा जी, मेम्बर इंचार्ज ( मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ ) ने संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में विचार व्यक्त किए।
बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज की पुण्यतिथि 24 अप्रैल को मानव एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, 45 साल बीत गए 1980 से लेकर 2025 तक निरंतर इस दिवस को हम बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के आदेश अनुसार ये दिवस जो 24 अप्रैल का है इसको कोई और नाम नहीं दिया जाएगा, इसे शहीदी दिवस या कुछ और नाम दिया जाए तब सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने कहा कि यह मानवता के मसीहा, युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज ने पूरा जीवन मानवता के कल्याण के लिए एक एक पल समर्पित किया। अपने खून का एक एक कतरा भी मानवता को समर्पित करके गए, उनको याद करने के लिए इस दिवस का नाम मानव एकता दिवस रखा जाए। हम सबको याद है 24 अप्रैल और 27 अप्रैल 1980 का दिवस जिस दिन बाबा गुरवचन सिंह जी के स्थान पर बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की ताजपोशी निरंकारी राजमाता जी ने कलकी बांधी, डाक्टर देशराज जी प्रधान संत निरंकारी मंडल ने तिलक लगाया बाबा हरदेव सिंह जी महाराज को गुरु गद्दी पर आसीन किया, वो अवतार पार्क निरंकारी कालोनी का वो दृश्य आज भी आखों के सामने घूम रहा है, आप जी में भी कुछ महात्मा होंगे जिन्होंने वो दौर देखा है तीन से चार दिन 24, 25, 26 अप्रैल बाजू पर काली पट्टियां सारे निरंकारी जगत ने बांध रखी थी प्रोटेस्ट में, ये आदेश आया कि अब हमारा गुरू हमारे समक्ष है अब इन काली पट्टियों की कोई जरूरत नहीं है। सतगुरु का एक फरमान, एक आवाज पूरे निरंकारी जगत ने उसी समय बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के गुरुगद्दी पर आसीन होते ही वो काली पट्टियां उतार दी गई। उस समय उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष की थी। 1954 का जन्म दिवस और 1980 में गुरुगद्दी, 26 साल का नौजवान महात्मा उनके चारों तरफ से आवाजें कान में पड़ रही खून का बदला खून। तब सतगुरु बाबा हरदेवसिंह जी महाराज के मुखारबिंद से आवाज आई कि, आपका तो एक रिश्ता था आपके गुरू थे आपकी जो भावना है कि खून का बदला खून उसकी कद्र करता था रक्त का बदला रक्त ही होगा, पर उसका तरीका अलग होगा रक्त नालियों में नहीं बहाया जाएगा, रक्त इंसान की रगों में बहेगा। खून बहाने वालों को सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने कहा कि आज ये हत्या जो हुई है वो बाबा गुरवचन सिंह महाराज की नहीं हुई, बाबा गुरवचन सिंह महाराज की हत्या तो कोई कर भी नहीं सकता।
सतगुरु देह का नाम नहीं है सतगुरु होता ज्ञान है सतगुरु को देह समझना भूल है अज्ञान है, यह खोटी भावना दुश्मनी की भावना जो कि बदला लेने की भावना बिसर गई उसका नाश हो गया जब मेरे जीवन में साधु की संगत आ गई। वो भाई कन्हैयालाल जो दुश्मनों को भी पानी पिला रहा है श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के वक्त जब औरंगजेब की फौजे मार रही है।
1978 से पहले सालाना समागम पर भी शहर में जुलूस निकाला जाता था। हुजूर बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज निरंकारी राजमाता जी उससे पहले 1968 तक शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज भी उसी पालकी पर मौजूद होते थे। महात्मा जन पूछते बाबा जी सच की जय होती है या झूठ की जय होती है बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज कहते कि दोनों की जय होती है, पहले लगता है कि सूरज को काले बादलों ने ढंक लिया है रात पड़ गई है अंधेरे का बोल बाला है झूठ का बोल बाला है झूठ जीत गया है ऐसा आभास होने लगता है परन्तु काले बादल तो दो चार पल में छट जाने है वास्तव में तो सूरज को चमकना ही है। कोई भी इंसान दर पर आया है, वो इस अकाल पुरख परमात्मा की संतान है, the entire humanity is my dear family, one world one family, इस निरंकार प्रभु ने इंसान को अपना रूप, the God created man in his own image, इंसान को अपना रूप देकर इस धरा पर भेजा , ये सारे इंसान मेरे अपने हैं कोई बेगाना नहीं है
अगन अगन को नहीं बुझाए, वैर वैर को मारे ना, लोहे को लोहा काटता है पर लोहा को लोहा काटने की तरकीब होती है, एक आरी के रूप में लोहा होता है एक संगल के रूप में लोहा होता है तब कटता है संगल से संगल नहीं कटते कहते हैं यहां भी वैर से वैर नहीं मिटता आग से आग नहीं मिटती। एक उम्र भी कम है मोहब्बत के लिए पता नहीं लोग कहां से समय निकाल लेते हैं नफरत के लिए। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने मानव एकता दिवस पर विचार प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही तत्पश्चात लंगर प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया।
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