कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) पानी, जल, नीर, व्हाटर आदि अनेक नामों से पुकारे जाने वाला यह अमृत तुल्य द्रव्य है जिसके बिना कुछ घंटे भी बिताना मुश्किल होता है यानि यह जल ही जीवन है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती। इंसान पशु पक्षी सहित हर प्राणी का अस्तित्व इसी पर ही टिका हुआ होता है।
इसे प्राचीनकाल से जलदेवता की उपाधि दी गई है जो कुदरत से हमें बेशुमार प्राप्त होता है वो भी बिना हमारे कोई प्रयास प्रयत्न किये हुए। यह अपने समय पर बरसता तो सभी के लिए है जिससे हम बार बार लगने वाली प्यास बुझा सके और दैनिक कार्य कर सकें सीधी सी बात कि इस भूमि पर जिंदा रह सकें। पर सवाल अब इसके संरक्षण का है क्योंकि सारा दारोमदार इसी के ऊपर है कि कितना वर्षा जल संरक्षित कर उसे 12 महीने तक आराम से खपाया जा सके ? जब बारिश कम होती है तो पानी की तंगी देखी जा सकती है या यूं भी कहें कि इसे हम सहेज नही पाते जिस कारण भी कमी होती है। अब क्या करें ? एक तरीका है कि जितने स्रोत जल इक्कट्ठा करने के बने हैं उन्हें उनके मूल रूप में रखा जाए, समय रहते पर्याप्त उपाय किये जाएं। वर्षा जल के नैसर्गिक बहाव के रास्तों को पहचान कर उसे सुचारू बनाया जाए। इन सब बातों के लिए यही सही समय है कि जब वर्षा ऋतु आए उससे पहले इंसानी इंतजाम पूरे कर लिए जाए ताकि जब कुदरत हमारे लिए बरसे तो उसकी कुछ कद्र हम भी कर पाएं फिलहाल पानी की बर्बादी कतई बर्दाश्त न हो। अभी गर्मियों में पेयजल की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाए फिर बरसात की भी तैयारी हो।
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