स्वर्ग इंसान साथ लेकर चल रहा है जिस पल मन में ठंडक है शीतलता है उसी पल हम स्वर्ग में हैं, ब्रह्म ज्ञान द्वारा निराकार जीवन में आ गया, अब परमात्मा से आत्मा जुड़ गई, 23 मार्च को जबलपुर में आयोजित मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ के संत निरंकारी समागम में सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के वचनामृत
( प्रबल सृष्टि ) सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 23 मार्च को जबलपुर के विजयनगर में मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ के निरंकारी संत समागम में आयोजित सत्संग समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन आशीर्वाद एवं दर्शन देकर कृतार्थ किया। इससे पहले 20 मार्च से 22 मार्च तक आयोजित ( NYS ) Nirankari Youth Symposium में निरंकारी यूथ की विभिन्न खेल खुद गतिविधियों व आध्यात्मिकता से जुड़े कार्यक्रमों में सतगुरु माताजी व राजपिता रमीत जी ने शामिल होकर मार्गप्रशस्त किया। सतगुरु माताजी जी द्वारा 23 मार्च को व्यक्त किए गए विचार निम्नानुसार है -
साधसंगत जी, प्यार से कहना धन निरंकार जी। जबलपुर में जहां पिछले तीन दिनों से ये युवा शक्ति यह एनवाईएस के माध्यम से चाहे वह एक खेलकूद का दिन रहा हो या बाकी दोनों दिन ये सिंपोजियम के और यही संदेश के जिस तरह यह सृष्टि में ये तत्व है, एलिमेंट्स है, उसी तरह एक उसी के सामान्य इस इंसान में भी और कैसे फिर भी यह सबसे ये सब कुछ होते हुए भी शरीर में यह एक चीज यह आत्मा जो परमात्मा का ही अंश और कैसे ये जीवन फिर पोटेंशियल रखता है कि आत्मा परमात्मा का मिलन हो जाए जीते जी। ये एक भटकन जो जन्म जन्म से योनियां बदलते बदलते ये आत्मा अब जब मानव तन में आई तभी मानव तन को भी एक सबसे ऊंची अवस्था एक बहुत ही एक भाग्यशाली इस जीवन को माना जाता है और वो इसीलिए कि जीते जी इस परमात्मा को प्राप्त करना है। ये ब्रह्म ज्ञान द्वारा अपने जीवन में निराकार परमात्मा ये जब आ जाता है फिर ये जीवन का हर पल भक्ति बन जाता है हर पल प्यार बन जाता है। ये एक व्यवहार रूप में भी चाहे वह पारिवारिक हो सामाजिक हो ये सेवा भाव भी खुद ब खुद आ जाता है क्योंकि जब मन ही हर समय के लिए इस परमात्मा के प्रेम में एक घुला मिला है तो प्रेम के अलावा ये मन में चतुर चालाकियां या एक कठोर अवस्था तो आ नहीं सकती तो अपने अंदर हम ही झांक के देखें कि अगर हम अंदर से परेशान है। एक अंदर से जलन महसूस कर रहे हैं या और किसी प्रकार की भी नेगेटिव कुछ भी चीज तो बात वही है कि हमने स्थान इस जीवन में फिर किसको दिया है ? एहसास प्रभु परमात्मा निराकार का है कि नहीं ? क्योंकि ये मन यह चंचल रूप भटकते हुए भी हम होते कहीं हैं ख्याल एक सेकंड में कहीं और के आने लगते हैं इसको स्थिर रखकर ये एक रस जीवन रहे, सहज रहे तो उसका साधन भी फिर यह परमात्मा ही है, कि यह मन स्थिर परमात्मा पर लगाएंगे तो जिस तरह सागर में चाहे कितनी ही एक लहरें उछलती हैं पर फिर भी वो सागर के ऊपर असर तो नहीं वह वैसे ही गहरा वैसा ही विशाल तो उसी प्रकार ये थॉट्स हमारे यह सोच विचार यह भावनाएं। कभी-कभी एक अगर इस लहर की तरह उछलती भी है, तो भी इस परमात्मा में स्थिर रहने से फिर यह अवस्था कि हमारा मन उस तरह बहुत व्याकुल नहीं होता। ये एक विश्वास का रूप एक स्थिर रूप लेकर फिर स्थिर के साथ जुड़कर स्थिर ही हो जाता है फिर सांसारिक रूप में तो दुख तकलीफें आए जाएं कुछ भी होता रहे ये मन उनके साथ अपना रूप नहीं बदलता ऐसे ही फिर जीवन व्यापन हो जाता है। जहां हर पल को एक चेतन होके बे ध्यानी में नहीं या कोई और कुछ कर रहा है उस भेड़ चाल में नहीं, अपनी भक्ति खुद इंसान फिर कर लेता है यह जान के जागरूक होके इस जागृति से कि हर पल में यह अलर्ट होके, चेतन होके, कि एक चीज जो भी अगर है यह कण कण से शिक्षा इंसान प्राप्त कर सकता है, फिर जब कण कण में ही परमात्मा है तो यह अनेकों तरह से कोई भी पल में यह शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन को और सुनहरा किया जा सकता है।
इंसानों के प्रति भी यह जो रिलेशनशिप्स होते हैं या एक वैसे ही किसी ना किसी वजह से यह दोस्ती या जानकार है, तो उसमें भी फिर यह जजमेंट्स कम हो जाती हैं क्योंकि जब यह पता होता है कि यह परमात्मा का ही बनाया अगला मेरे सामने जो इंसान है, तो फिर अगर एक पल के लिए उनकी कमियों पर नजर जाती भी है, कि यह उनके स्वभाव में नेचर में ठीक नहीं है तो भक्त तो चेतन होते हैं, वो उसी पल खुद अपना नजरिया यह दृष्टिकोण बदल लेते हैं, कि हां इस इंसान की एक कमी तो चलो हमें दिख गई अब नजर डालते हैं इसके अनेकों गुणों पर अब देखते हैं यह इंसान जो हमें एक पल पसंद नहीं आया उसके अंदर ना जाने कितने ऐसे गुण हैं जो हम में भी नहीं है। उनकी ओर नजर डालने की कोशिश वो ग्रहण करने की कोशिश तो ये जीवन में फिर जितनी ज्यादा भक्ति एक प्रेम से जुड़कर आती है। उतना ही यह सिंपलीसिटी भी जीवन में आती जाती है फिर यह अपना काम निकालने के लिए इंसान किसी दूसरे का हक नहीं दबोचता फिर जहां अपनी काम में बरकत भी आए दूसरे के काम के लिए भी यह दिल दुआ करता है, कि हर एक का ही एक प्रोग्रेस हो मटेरियस्टिक भी एक संसार में आए हैं, तो धन दौलत जो भी एक सपने हैं वो काम काज जिस तरह का है वह अचीव करने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि जीवन है तो वो जीना है। एक सुख सुविधा अपने जीवन में लानी है तो उसके लिए वह धन रूप भी होगा घर भी होगा तो फिर ये स्पिरिचुअल होने का मतलब क्या है कि क्या ये अपने कर्तव्यों से समाज से घरबार की जिम्मेवारियों से अलग होकर एकांत में बैठ के अंतरमन के सोचते ही रहे तो क्या स्पिरिचुअल कहलाए जाएंगे ? भक्ति तो वाकई में एक अपने असली रूप में जहां पे भी है जिस पल में भी है तो की जाती है वो चाहे अकेले हो घर में हो परिवार में हो समाज में हो किसी बाजार शोर में हो या एक अपने बंद कमरे में अकेले ही हो भक्त तो हर समय का भक्त है फिर वो फर्क नहीं पड़ता कि अभी हलचल है, आसपास डिस्ट्रक्शन है या अभी कोई डिस्ट्रक्शन नहीं है, एक परमात्मा हर जगह है, वो फिर उठते जागते खाते पीते अगर एहसास बना है तो हर पल में नजर आता रहेगा तो भाव वही के ये जीवन मिला है तो जरूर अपनी उपलब्धियों को एक सपने बुना के अचीव भी करना ये भी मुबारक बाद तो है पर सबसे पहले यह आध्यात्मिकता यह स्पिरिचुअल एक यह तो जीवन में लाना होगा और जिन्होंने भी ऐसा किया है परमात्मा को प्राथमिकता दी है, वो फिर फर्क नहीं पड़ता कि झोपड़ियों में रहते हो या महल में रहते हो वो हर हाल उनका मन खुश है आनंद की अवस्था है एक बात यही कि चलो ये सब जो है, गुजरान मात्र ही है, एक इसमें लालच प्राप्ति एक गलत तरीके से अपनी ग्रोथ नहीं करना ये हर एक के भले की कामना करते हुए एक अपने जीवन को जीने वाले भक्त तो ऐसा पोटेंशियल हर एक में है हर कोई हर के लिए दिल से एक बेहतरी एक अच्छी कामना कर सकता है।
ये सिर्फ सेल्फिश होकर एक अहंकारी रूप होके सिर्फ खुद पर केंद्रित कि और किसी को कुछ हासिल हो ना हो हम तो धोखे से यह भी हड़प लेंगे किसी का हक मार लेंगे ऐसा अगर मन सोचता है तो फिर तो ये जीवन व्यर्थ ही जा रहा है हम अपना भी नुकसान कर रहे हैं। अगर हम ये सोच रहे हैं कि किसी के ऊपर गर्म कोयला मार देंगे तो जैसे ही वह गर्म कोयला उठाएंगे सबसे पहले हमारा हाथ जलेगा फिर वह निशाना अगर ठीक हुआ तो जाकर वो कोयला किसी को लगेगा नहीं तो ज्यादातर वो निशाना भी ठीक नहीं होगा तो ये भाव मन में उठा दूसरे का नुकसान करने का तो दूसरे का नुकसान हुआ नहीं हुआ अपना अवश्य हो गया कैसे वो जलन महसूस हुई ये रूप तकलीफ का तो बात वही कि हर पल में ही अपना स्वर्ग इंसान साथ लेकर चल रहा है और वही बात कि जिस पल मन में ठंडक है शीतलता है उसी पल हम स्वर्ग में हैं कोई मौत की इंतजार नहीं एक जीवन जीते जी ही हर पल में स्वर्गीय रूप तो दातार हर एक में ऐसी क्षमता रखता है जिस प्रकार एक बीज में पूरी क्षमता है कि एक विशाल पेड़ बने और वो पेड़ के इतने अलग-अलग रूप व उसके अंदर फीचर्स उसके वह पत्ते भी हैं लक्कड़ भी है वह टहनिया भी हैं वह रूट्स भी हैं फल भी हैं फूल भी हैं अन्य अन्य तो बात वही कि वैसे ही एक इंसान में एक जब मानव का तन मिला है तो फरिश्ता भी बन सकते हैं दानव भी बन सकते हैं क्या बनना है एक कोई भी चीज अपने आप में अच्छी या बुरी नहीं है एक अगर चाकू जो हमें पता है कितना ही शार्प होता है उसका एक छूते ही अगर शरीर पर तो एक खून बहने लगता है तो बात वही कि चाकू तो हर एक के हाथ में हो सकता है पर उस चाकू से करना क्या है वो नियत के बारे में बात है अगर तो वो चाकू किसी डॉक्टर के हाथ में है तो वो शरीर का अंग ठीक करने के लिए कोई ऑपरेशन करने के लिए वो जरूर उस शरीर पर चाकू का ये शार्प हिस्सा लगा के फिर चाहे खून भी निकलेगा पर वो एक पॉजिटिव चीज है वो फिर एक कोई चीज सुधार के लिए की जा रही है शरीर पर वो वार की तरह नहीं है सुधार के लिए है और वही किसी एक व्यक्ति जो ऐसी धारणा रखता है दानव प्रवृत्ति का तो फिर तो वह काट मार लूटता चोरियां अन्य कोई भी चीज एक नुकसानदायक उस चाकू से कर सकता है तो बात वही जैसे यह एलिमेंट्स में भी यह सिंपोजियम में आग की भी बात थी तो बात वही है कि अगर आग का एक यही एक तत्व में बात की आग से तो फिर एक हीट बनती है गर्माइश का भाव होता है तो बात वही कि अगर हम आग में अपना हाथ सीधा डाल देंगे तो अवश्य ही हाथ जलेगा पर उस आग को पॉजिटिवली भी यूज किया जाता है तभी हर दिन अपना भोजन भी हम खा पाते हैं क्योंकि वो आग और फिर अपने हाथ के बीच में हम वो तवा रख देते हैं या कुछ और चीज से सीधा वह आंच नुकसान नहीं देती तो बात वही कि ये संसार में तो हर चीजें हैं उसको हम सदुपयोग में ला रहे हैं या दुरुपयोग में ला रहे हैं अगर एक जितनी भी क्षमता अनुसार धन दौलत घरबार है उसका हम अहंकार कर रहे हैं दिखावा मात्र कर रहे हैं मिसयूज कर रहे हैं या वाकई ही परमात्मा की देन समझ के फिर एक बहुत संभल के पदार्थों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं वरना तो पदार्थ भी इतने कि अगर खरीदते रहे तो हर दिन कुछ नया भी इंसान खरीद के जमा कर सकता है पर उसका इस्तेमाल क्या है क्या वो चीज वाकई ही जरूरी है नहीं है तो फिर वह खरीद के जमा करने से भी क्या होगा वही धन सेवा में लगाया जा सकता है वही दिखावे से दूर एक किसी अच्छी चीज में उपयोग किया जा सकता है तो बात वही कि हर एक की क्षमता अनुसार जो भी दातार ने बक्शा एक मन में यह भाव मेहनत का तो होना चाहिए कि आज अगर इतना है यह क्षमता बढ़ाकर इतना अचीव किया जा सकता है पर उसी में उसी चीज को वो मायावी चीज है पूरा अपने मन को समर्पित उसकी तरफ नहीं करना क्योंकि मन तो परमात्मा के हवाले होना चाहिए बाकी शारीरिक क्रिया रूप में ये मेहनत मशक्कत करते हुए पालन पोषण भी घर में एक अपने कामकाज को भी बढ़ावा दिया जा सकता है तो यह धन दौलत माया में यह दिल ना अटकाएं आज फायदा है कल नुकसान भी होगा फिर फायदा होगा यह क्रिया तो चलती रहेगी तो सिर्फ इसी के ऊपर आधारित जीवन करेंगे तो माया ने तो रूप बदलते ही रहना है एक सेकंड भी नहीं लगता वो वस्तुओं को चीजों को अभी कुछ रूप है, अगले ही मिनट वो सुखदाई नहीं रही वह तकलीफ का कारण बन गई एक बहुत ही साधारण एग्जांपल जो हमेशा हम सुनते हैं कि अपना ही घर होता है, हमें पता है यहां सोफा पड़ा है यहां बेड है फिर भी जब लाइट ना हो अंधेरा हो तो अपने ही सोफे से टकराते हैं अपने ही बेड का वो एज अपने पांव पर ठोकर की तरह मार लेते हैं तो बात वही यह साधन तो सुख के लिए हैं और जब ये रोशनी नहीं है परमात्मा रूपी हमारे जीवन में तो फिर वो साधन भी एक नुकसान का ही कारण देते हैं तो बहुत चेतन होके जीवन के हर पल को जीना है कोई भी चीज जैसे वो अंग्रेजी में बोलते हैं कि वी शुड नॉट टेक एनीथिंग फॉर ग्रांटेड कि ये चीज तो है ही तो ये रहेगी ऐसी नहीं ये संसार परिवर्तनशील है चीजों ने भी बदलना है आज कोई इंसान हमसे हंस बोल रहा है कल शायद वह बात भी ना करना चाहे हर एक के स्वभाव में भी चेंजेज आते हैं औरों के तो क्या हमारे ही सुबह से रात तक कितनी बार ही ऐसा हो जाता है कि एक हमने अपने अंदर अलग-अलग इमोशंस भी महसूस कर लिए अभी अकेले रहने का दिल है तो अभी गुस्सा आ गया अभी हंसी से औरों को भी हंसाने का दिल कर रहा है ये सारी क्रिया एक दिन में जब हम अपने अंदर भी अलग-अलग इतनी महसूस कर लेते हैं तो फिर पूरे संसार को अगर लार्जर पर्सपेक्टिव पर देखें तो सब कुछ कितना एक वर्सटाइल है कितना वास्ट वह अपना रूप बदलता रहेगा तो कोई भी चीज जैसी है उसका नियम परिवर्तन है और बस ये परिवर्तन को एक्सेप्ट भी करना है ये रूप सिर्फ ऐसे नहीं कि मैं ऐसा हूं सामने वाला भी ऐसा ही हो मुझे यह पसंद है सामने वाले के कल्चर में खाने पीने रहने के तरीकों में तो ऐसा है नहीं तो वो इंसान अच्छा नहीं है नहीं हर कोई अच्छा है हर एक जिस तरह का है उससे प्यार ही किया जाए उससे ये अलग होने की वजह को नफरत ना बनाया जाए एक प्यार से रिस्पेक्ट से एक्सेप्ट करा जाए तो जीवन इस तरह एक महकते गुलदस्ते की तरह होगा जहां किसी की सिर्फ कमियों पर ही नजर नहीं हर एक के एक अच्छाइयों को अपने पास है हर एक में तो उस वजह से वह इकट्ठे रूप एक एकत्व का कि इस परमात्मा से तो एकत्व हो गया इस ब्रह्म ज्ञान द्वारा निराकार जीवन में आ गया तो अब यह परमात्मा से यह आत्मा तो जुड़ गई और उसी के साथ-साथ कण कण से भी एकत्व हो गया फिर चाहे वो पशु पक्षी एक पूरी कुदरत किसी भी फॉर्म की हो इंसान भी हो तो यह दिल से दिल जुड़ गया ये एक यूनिटी उस रूप में एकत्व का रूप भी ले लेती है तो दातार हर एक पर कृपा करें कि यह भाव जो हमेशा निराकार से जुड़ने के और यही बार-बार कहा जाता है कि सेवा सुमिरन और सत्संग यह जितना करेंगे उतना दिल और पक्का और नजदीक रिश्ता अपना इस परमात्मा से बना लेता है संतों के अच्छे वचन सुनते रहेंगे तो सही रास्ते पर रहेंगे और मन भी यह सुमिरन रूप से जुड़ा रहता है निराकार से और फिर सेवा का भाव भी कोई ऐसा नहीं कि कुछ अपने अपने परिवार अपने दोस्तों के लिए ही किया जाए पूरा संसार ही अपना है, ये सेवा भाव हर एक तक समर्पित रूप से चलती जाए तो दातार हर एक पर कृपा करें कि भक्तिमय जीवन इस ब्रह्म ज्ञान की रोशनी से हर कोई जीता जाए साध संगत जी धन निरंकार जी।
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