ये हीरा सबके हिस्से में आया लेकिन मालोमाल तो वही होगा जो गांठ खोल कर देखेगा, जीवन में ज्ञान नहीं उतारा ये ज्ञान कोरा का कोरा रह गया, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन पूनम लालवानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) जब तक मालिक की मेहर नहीं होती कुछ भी हिस्से में प्राप्त नहीं होता ऐसे कर्मयोगी संत जिन्होंने अपने जीवन को जीकर हमें सिखाया और इनकी कृपा से पले आज इनकी ही गोद में बैठकर आप संतों से आशीर्वाद लेने का यह सुन्दर अवसर मालिक ने बक्शा है। गुरसिख जो नीवा होकर इस सच की पहचान कर लेता है इस रमे हुए राम को जब जान लेता है जो अंग संग समाया हुआ है पत्ते पत्ते में है डाली डाली में कोई जगह खाली नहीं है फिर वो गुरसिख पूरा होता है। जब ब्रह्म ज्ञान मालिक ने बक्श दिया ये अनमोल दात हमारी झोली में आ गई इसके बाद ही भक्ति शुरू होती है जो मालिक ने हमें कर्म बताएं सत्संग सेवा सिमरन यह भक्ति के आधार हैं इन तीनों को अगर गुरसिख करता चला जाता है तो जीवन में हर सुख प्राप्त कर लेता है। सतगुरु अंतर्यामी होते हैं घट घट के अंतर की जानत, भले बुरे की पीर पहचानत। मन में अगर विश्वास है तो हमारे सहज में ही काम बनते चले जाते हैं अगर विश्वास में कमी आ गई फिर हमारे काम बनते बिगड़ जाते हैं। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतारवाणी के शब्द पर बहन पूनम लालवानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा एक गुरसिख दूसरे गुरसिख का सम्मान सत्कार करता है तो सतगुरु खुश हो जाते हैं कि यह ब्रह्म ज्ञानी संत इनके हृदय में यह ज्ञान बैठ गया। यह ज्ञान अनमोल है इसको हमने जीवन में जीना है तब हमारे जीवन में बदलाव आता है अगर ज्ञान लेकर भी जीवन नहीं बदला फिर ज्ञान से हम कोई लाभ नहीं ले रहे हैं वो कोरा ज्ञान है। कोरा ज्ञान हमें लाभ नहीं दे सकता अगर कोई इंसान किसी नौकरी के लिए जाए, उसे नौकरी मिल भी जाए लेकिन वो वहाँ जाए ही नहीं तो वो तनखा का हकदार नहीं होता। फिर हम सतगुरू की रहमतों के कहां हकदार, मालिक ने तो बहुत सुन्दर सजाया लेकिन हमने इसकी कद्र नहीं की, हमने इसको जीवन में नहीं उतारा, ये ज्ञान कोरा का कोरा रह गया, कहते हैं इंसान को ये मानुष जन्म मिला परमात्मा की पहचान करके भक्ति करने के लिए अगर इंसान इसकी पहचान नहीं करता यूँही व्यर्थ में अपना जीवन बिता देता है जिस प्रकार हम मुट्ठी में रेत भर लें तो वो रेत फिसलती जाती है वो मुट्ठी हमारी खाली हो जाती है कुछ भी नहीं बचता ये इंसानी जामा भी छीन जाता है और हमारा जीवन व्यर्थ चला जाता है।
जब जीवन में सतगुरु आते हैं तो हमारा जीवन बदल कर रख देते हैं यह हमें अपने अंदर झांक कर देखना है कि हम कितने वर्षों से ज्ञान लेकर के सत्संग में आ रहे हैं यह गुरुमत की पाठशाला है हमें अपनी अवस्था को देखना है, गुरू की रहमतों को देखना है कि आज हम कहां खड़े हैं, मालिक ने कोई कमी नहीं छोड़ी पूरा का पूरा ज्ञान खोल कर रख दिया, जिस प्रकार दुकानदार के पास हम जाते हैं कपड़ा खरीदने तो वो पूरा का पूरा थान खोल कर हमारे सामने रख देते हैं लेकिन जितना हम पैसा जितनी हम पेमेंट उसकी अदा करते हैं उतना कपड़ा हमारे पास होता है इसी तरह मालिक ने ज्ञान हमें बक्श दिया लेकिन जितना जितना हम सत्संग सेवा सिमरन से जुड़ते चले जाएंगे यह निरंकार भी उतना-उतना हमारे जीवन में उतरता चला जाएगा। मालिक ने तो मोती बिखेरे हैं लेकिन अज्ञानता की पट्टी आँखों पर पड़ी है तो उन मोतियों को भी कंकड के भांति रौंदते चले जाते हैं कुछ भी हाथ नहीं आता, बहुत सुन्दर मौका दिया है मालिक ने, सबके हिस्से में ये सच्चा हीरा आया है। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते थे बीखा भूखा कोई नहीं सबकी गठरी लाल, गांठ खोल देखत नहीं किस विध भए माल। ये हीरा सबके हिस्से में आया लेकिन मालोमाल तो वही होगा जो गांठ खोल कर देखेगा।
ज्ञान के बाद हमें जीवन जीने की कला सतगुरू सिखाते हैं कि नीवा होके अहंकार को छोड़ दो। अगर मन में अहंकार है फिर निरंकार अलग हो जाता है फिर निरंकार नहीं बैठता। जिस प्रकार अगर जूते में कंकड है तो वो चुभन ही देता है जब तक हम उस कंकड को निकाल नहीं लेते। सबसे प्यार हो वैर, विरोध, नफरत, ईर्ष्या ना हो, मन में किसी के लिए निन्दा ना हो। कहते हैं मीठे से मीठा वार भी किसी संत पर, किसी गुरसिख पर मत करना, हल्का शब्द कभी मत बोलना जो आपके जीवन को बिगाड़ दे, बहुत चेतन अवस्था होती है गुरसिख की एक-एक कदम गुरु के सहारे जब गुरसिख चलता है तो जीवन में निखार सुकून आनंद आता है कि हम बयान नही कर सकते हैं। शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी अपने वचनों में फरमा रहे हैं सत्संग सेवा सिमरन का लाभ तब समाप्त हो जाता है खत्म हो जाता है जब गुरसिख गुरसिख को अवगुणों से भरा देखता है। कितना चेतन कर रहे हैं मालिक एक एक कदम जब गुरसिख गुरू के सहारे चलता है तो ये दस कदम आगे होके गुरसिख को थाम लेता है और अगर गलती से किसी की निंदा कर दी तो करोड़ो कदम वो सतगुरू से पीछे चला जाता है गुरू की सिखलाई जब हम जीवन में उतारते हैं तो जीवन में हर सुख आते हैं। प्यार ही सजाता है गुलशन को और नफरत वीरान करे, प्यार बाजारों में नहीं मिलेगा प्यार केवल गुरू के दर पर मिलेगा, गुरू दिखावे, गुरू मनावे, गुरू ही प्यार सिखाता है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचार के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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