आत्मा का दीपक जलाना बहुत जरूरी है आत्मा का दीपक जल गया तो हर समय रोशनी है, सतगुरु के रास्ते जाना तेरे जीवन में बहार रहेगी, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा विजय रोहरा जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) संगत मिलना ही सबसे बड़ी कृपा है संगत में आने से ही हमें सेवा की समझ आती है संतों का सत्कार करना संतों की इज्जत करना यह सारे के सारे गुण जो हैं हमें इस माँ रूपी साध संगत से प्राप्त होते हैं और संगत में आने से ही संतों महात्माओं की कृपा दृष्टि पड़ जाती है सहज में ही आशीर्वाद मिल जाते हैं सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कह रहे हैं कैसी भी परिस्थिति कैसा भी समय हो कितना भी उतार चढ़ाव हो लेकिन इस साध संगत की नजर पावन कर देगी तेरा जीवन पावन हो जाएगा कुछ भी हो जाए यह संगत को नही छोड़ना। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में हरदेव वाणी के शब्द पर महात्मा विजय रोहरा जी ने व्यक्त किए।
सतगुरु के रास्ते जाना तेरे जीवन में बहार रहेगी, मन में सोच विचार नकारात्मक न रखें हमें सत्य के साथ जोड़ा है जो पावन है शिव है सुंदर है बेरंगा है बेरूपा है जो इसके साथ रहते हैं वह इस निरंकार से बातें करते रहते हैं। सुबह उठते हैं बिस्तर से इस निरंकार के दर्शन दीदार हो जाते हैं और कहते हैं तेरा शुकर है शुकर है तुम मेरे साथ हो। इस अवस्था में पहुँचाने वाला केवल सतगुरु होता है गुरू दिखावे, गुरू मनावे गुरू ही प्यार सिखाता है गुरू बिन भक्ति न होवे। जितने भी आज हम यहां बैठे हैं गुरू की कृपा से ही बैठे हैं बात इस आत्मा की हो रही है जो इस परमात्मा का अंश है और इस आत्मा ने अपने पति रूपी परमेश्वर के दर्शन दीदार नहीं किये तो यह आत्मा अंधेरे में है। यह मन का दीपक यह आत्मा का दीपक भी जलाना बहुत जरूरी है क्योंकि आत्मा का दीपक जल गया तो हर समय रोशनी है।
ऐसा नहीं है कि राम के समय में ही संकट मोचन हुए थे आज भी यह संकट मोचन हैं जब गुरु के आदेशों को गुरु के ज्ञान को लेकर चलेंगे वो संकट मोचन बन सकता है यह सतगुरु की कृपा से संभव होता है जब गुरु के एक एक वचन को अपने जीवन में बसा लेतें हैं जैसा गुरू कह रहा है जैसा गुरू चाह रहा है ऐसा हमारा जीवन हो जाए। एक गुरसिख जिस गली से निकल जाए आपके जीवन को देखकर आपके कर्मों को देखकर लोग कहें कि वो जा रहा है संत, जिन परिवारों में प्रभु परमात्मा का यशोगान होता है उस घर में देवता रहते हैं। आत्मा रूपी राधा कहती है मैं कृष्णा कृष्णा बोले जा रही हूँ कहीं मैं कृष्णा ही न हो जाऊं यदि मैं कृष्णा हो गई तो मैं प्रेम किससे करूंगी सखियां कहती हैं यदि तू कृष्णा हो गई तो कृष्णा राधा हो जाएंगे।
उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र किया जब शहंशाह जी बैठे हैं एक माता आती है और कहती है मेरा मन बहुत करता है कि संतों की सेवा करूँ पर मेरे पास कुछ नही है बस कुछ सिक्के हैं तब शहंशाह जी उनसे कहते हैं इनसे दो पैकेट नमक लेकर लंगर में सेवा कर दो तेरा नमक लंगर में पड़ेगा तुम्हारी इस सेवा से कोई ऐसा निवाला नहीं होगा जो संतो तक नही पहुँचे यह गुरु की कृपा है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत व विचारों के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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