निरंकार का रूप जान के सारा संसार इसका मानो, ज्ञान की दात जो झोली में आ गई अब मुझे अपने आप को संवारना है, ज्ञान की रोशनी को लेकर संसार में चलें, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन रिया वतनानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सभी अपने घरों से प्रेम विश्वास और लगन का तोहफा सतगुरु के लिए लाए हैं सभी के चेहरे ऐसे नूरो नूर ऐसे चमकदार कि सतगुरु मां सभी के भावों को परवान करे। आदरणीय महापुरुषों की यह सजाई बगिया में हम सतगुरु की छांव में बैठे हैं और इसका कीर्तन कर रहे हैं यह बहुत बड़ी कृपा है, ज्ञान सरोवर में ज्ञान के मोतियों के बीच हमें बैठाया है। सतगुरु ने हमारी झोलियों में अनंत अनंत खुशियों के भंडार डालें और सभी ज्ञान से भी परिपूर्ण है ब्रह्म ज्ञान की दात भी सभी के हिस्से आई हुई है तो यह निरंकार के दर्शन करते हुए सतगुरु का शुकर अदा कर पा रहे हैं और सभी इस संगत में बैठकर इसका आनंद प्राप्त कर रहे हैं सुकून प्राप्त कर रहे हैं तो वही सुकून दासी आशीर्वाद रूप में अपनी झोली में भी चाहेगी, आप संत बड़े महान हैं इतना विश्वास इतना प्रेम उनके हिस्से ही आता है जो सतगुरु पर पूर्ण समर्पित होते हैं जो सतगुरु से प्रेम करते हैं। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतारवाणी के शब्द पर बहन रिया वतनानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा साध संगत एक शिष्य गुरु के पास आता है और कहता है कि परमात्मा है ? गुरु साहेबान कहते हैं हाँ, शिष्य कहता है पर दिखे कैसे कि परमात्मा है ? तो गुरु साहेबान कहते हैं कि सूरज को देख पाते हो ? शिष्य कहता है हाँ सूरज को देख पाता हूँ उसकी धूप को महसूस कर पाता हूँ अगर ना निकले तो भी पता चलता है तो गुरु साहेबान कहते हैं कि ऐसे ही परमात्मा है सूरज जब निकलता है उसकी धूप को महसूस करते हो उसके होने का आभास होता है और परमात्मा वो ब्रह्म ज्ञान की दात हमें दे देता है कि उससे मुझे मेरे होने का आभास होता है मेरी मैं का आभास मुझे होता है तो वही ज्ञान की दात आप सबकी झोलियों में आई हैं आप अति धनवान हैं। सतगुरु मेहर करे कि हम यह मान पाएं कि यह जग दा कर्ता मालिक मेरे अंग संग है। कभी भी दुख हमारे सामने ना आए क्योंकि यह तो सुखों का दाता है यह सतगुरु सुखों की खान है बस मुझे विश्वास करना आए। गुरु से प्रेम, गुरु से विश्वास और लगन और मजबूत करते जाएं।
उन्होंने कहा साध संगत जुगां जुगां तक जीना का अर्थ शरीरों वाली बात नहीं कि शरीर करके मैं हमेशा जीवित रहूँगा ज्ञानवान इंसान होते हैं महापुरुष होते हैं वह अपने कर्मों से हमेशा जीवित रहते हैं और बड़े भागों वाले होते हैं जो गुरु के इस अमृत रस को पीते हैं। ऐसे ही संतजन इस पावन पवित्र ज्ञान को सतगुरु से लेकर इसका अमृत रस पीते हैं और साथ साथ अपने मैं की पहचान करते हैं कि मैं कौन हूँ क्यों आया हूँ और इस जहां से मुझे लेना क्या है ऐसा तो नहीं कि माया की भीड़ में इसकी रंग रलियों में मैं गुम हो गया हूँ। संत जन बताते हैं ज्ञान का दर्पण ले सतगुरु से अपना आप संवार लें। ये ज्ञान की दात जो झोली में आ गई अब मुझे अपने आप को संवारना है हर समय इसके अहसास में जीते हुए हर समय इसकी भक्ति को आगे रखना है क्योंकि भक्ति भक्त के जीवन को निखारने का काम करती है।
उन्होंने कहा साध संगत गुरू हमारे जीवन में आया है यह सतगुरू पावन पवित्र यह बेरुपा बेरंगा कभी किसी रंग में नहीं, कहते है निरंकार का रूप जान के सारा संसार इसका मानो, सारे संसार में इसकी मौज इसकी खुशियां और इसी का रूप है, मान पाऊं कि ये निरंकार की सारी रचना है कितनी सुन्दर व्यवस्थाएं हैं। साध संगत कहते हैं यह गुरू का वृद है शुकर है कि मेरे लिए इन सारी व्यवस्थाओं को बनाया हैं। बार बार यह लाइने आती है कि मानुष्य जन्म अमोलक है कहते हैं यह अनमोल है इसे ज्ञान ने बेश कीमती बना दिया अगर इस निरंकार को समझते हैं इसकी भक्ति में रहते हैं। भक्ति पावन विषय है यह हाथ पैरों का विषय नहीं अगर हाथ पैरों का विषय होता तो विकलांग कभी नहीं कर पाते, यह आंखों का विषय नहीं अगर आंखों का विषय होता तो सूरदास कभी भक्ति नहीं कर पाते। अगर धन दौलत का विषय होता तो गरीब और कमजोर कभी भक्ति नहीं कर पाते यह तो भाव का विषय है।
उन्होंने कहा जो ज्ञान मेरे अंदर बस रहा है वही ज्ञान सारी ही सृष्टि में समाया हुआ है हाँ यह जरूर कि मैं अगर मानता हूँ कि गुरु के चरर्णों से मुझे इस ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसकी बनाई हुई सारी रचनाएं यह पूर्ण हैं, हम किसी के गुणों को देखें उसके प्रेम को पढ़ें और गुरु के प्रति उसका विश्वास और लगन देखते हुए मैं सबके गुण देखकर गुणों का ग्राहक बन पाऊं किसी के अवगुण ना देखूं। कबीरदास जी ने लिखा है कि मैं भी हूँ तू भी है यह बात कुछ जचदी नहीं मैंनों अपनी होन दा इंकार करना होगा। यह पावन ज्ञान मिल गया है तो उसने यह जो नूरी नजर दे दी है मुझे उसी नजर से इस संसार को देखना पड़ेगा निरंकार तो मौन है हम भी कम बोला करें। इन सिखलाईयों को शिक्षाओं को मैं संसार में लेकर चलूँ मेरे मन में गुरु के लिए विश्वास हो कि यह मेरे लिए जो भी करेगा अच्छा करेगा इस ज्ञान की रोशनी को लेकर संसार में चले। यह सतगुरु का फरमान है कि जो ज्ञान वाला है वही ऊंची मत वाला है अपने हर कार्य में इस निरंकार को आगे रखो बहुत शांति मिलती है बहुत खुशी मिलती है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचार के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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