गहराई से सोचने वाली बात है कि हमें मनुष्य जन्म मिला, निरंकार ने कितना तरस किया कि सुन्दर आंखे दी, कान दिए, नाक दी, हाथ पैर दिये, इनकी कितनी कीमत होगी इसका शुक्राना करें .. कहीं हम इसे यूँही तो नहीं गवां रहे हैं .. संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन सुनीता कोटवानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सच्चे पातशाह समझा रहे हैं कि निरंकार ने सबसे सुन्दर ये दात सुन्दर काया बक्शी है। मालिक ने हम पर तरस कर ये मानुष जन्म दिया है ये बार बार मिलने वाला नहीं है, ये काया जो हमें मिली है जिसको हम अपना समझ रहे है कि ये सदा कायम दायम रहेगी तो ये हमारी भूल है जो आया है सो जाएगा। हम जैसा कर्म करेंगे हमें वैसा ही फल मिलेगा, यह धरती धर्म की है हम जैसा बीज डालेंगे फल भी वैसा ही मिलेगा। इस मानुष जन्म में हमने इस ज्ञान को पाया लेकिन कितनी भक्ति कर रहे हैं ? एक बंदा डॉक्टर के पास अपनी जांच रिपोर्ट लेने गया, जब डॉक्टर ने उसे रिपोर्ट और दस हजार का बिल दिया और कहा कि आपके गले और कान की प्रॉब्लम है आपका ऑपरेशन होना बहुत जरूरी है और ऑपरेशन के पचास हजार लगेंगे तो वो सत्तर साल का बुजुर्ग रोने लगा तो डॉक्टर हैरान हो गया कि क्या मैंने ज्यादा पैसे मांग लिये आखिर ये रो क्यों रहा है ? डॉक्टर ने पूछा क्या बात है आप रो क्यों रहे हैं तो वो सत्तर साल का बुजर्ग महात्मा कहता है कि मेरी उम्र सत्तर साल हो गई, इस मालिक ने कितना तरस किया कि सत्तर साल तक इस मालिक ने मेरे कान सुरक्षित रखे, गला सुरक्षित रखा लेकिन कभी शुक्राना किया ही नहीं कि मालिक तेरा शुक्र है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर विचार करते हुए बहन सुनीता कोटवानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
साध संगत से उन्होंने कहा कि यह मनुष्य जन्म मिला है लेकिन फिर भी इंसान कहता है कि मेरी किस्मत में क्या लिख दिया ? गहराई से सोचने वाली बात है कि हमें मनुष्य जन्म मिला, निरंकार ने कितना तरस किया कि सुन्दर आंखे दी, कान दिए, नाक दी, हाथ पैर दिये, इनकी कितनी कीमत होगी इसका शुक्राना करें। उठते बैठते इस मालिक का शुक्राना करें कि इसने इतना सुन्दर जीवन बक्शा है, इतनी सुन्दर भक्ति बक्शी है, मनुष्य जन्म कितना अनमोल है। कहते है हीरे जैसा जन्म होत न बारंबार, ये हीरे जैसा जन्म ही तो है जिसकी कोई कीमत चुका नहीं सकता इसलिए इस मालिक की भक्ति करें इसके गुण गाएं यश गाएं, किसी के भी दिल को न दुखाएं, किसी के लिए कड़वे शब्द न बोलें, हमारे हर एक कर्म पर इसकी निगाह है कि हम किस तरह जीवन जी रहें है।
उन्होंने एक कहानी का जिक्र करते हुए कहा कि एक दिन राजा ने एक लोहार पर खुश होके उसे चंदन का बाग दे दिया। अब उस लोहार ने उस चंदन के बाग से लकड़ियां काट काट के कोयले बना दिये और कोयले बेचने लगा, एक दिन राजा को ख्याल आया कि जाके देखूं तो लोहार कितना धनवान बन गया ? जब लोहार के पास राजा पहुँचा तो देख कर आश्चर्य चकित हो गया क्योंकि उसने तो सारा बाग कोयले से भर दिया था। कुछ बेच दिया, कुछ कोयले पड़े थे राजा कहता है लोहार से कोई लकड़ी बची है ? तो लोहार कहता है एक छोटी सी लकड़ी जो मेरे कुल्हाड़ी के हत्थे में लगी है तब राजा कहता है इसे बाजार में लेकर जाओ और बेचना नहीं बस इसका मूल्य पूछना। लोहार बजार से मूल्य पता कर लौटा तो राजा के पास पहुँचा और कहता है मेरे से भूल हो गई, मुझे एक मौका और दो तो राजा कहता है कि नहीं समय निकल गया अब मौका नहीं मिलेगा। यही हालत कहीं हमारी तो नहीं ? इस निरंकार इस राजा ने हमें यह मानुष जन्म दिया कहीं हम इसे यूँही तो नहीं गवां रहे हैं ? वैर, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, जलन, निंदा, नफरत, ये मेरा ये तेरा, एक बार एकांत होकर सोचें ये दोबारा जन्म नहीं मिलेगा इस जन्म को सार्थक करना है। हर किसी को खुश रखना है, मुस्कुराना है, हंसना है, गाना है, ये जीवन बार बार नहीं मिलेगा, सब के लिए भलाई की कामना करनी है, सब के लिए अच्छा सोचना है।
उन्होंने साध संगत से कहा जब इस दर पर पहुँच गए गुरु चरणों में गुरु की संगत में पहुँच गए तभी तो पता चला कि आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर। हम सदा के लिए रहने नहीं आये, कोई पचास, कोई साठ, कोई सत्तर, कोई अस्सी, कोई नब्बे। गिनती की सांसे इस मालिक ने दी हैं इसे संवार लें सजा लें तो जीवन में आनन्द भी आएगा। एक बार बाबाजी ने वचनों में फरमाया कि यदि एक सुन्दर मकान हो उस मकान के अंदर सुन्दर कमरें हो, कमरे के अंदर सुन्दर पलंग रखा हो और पलंग पर सुन्दर चादर बिछी हो तो क्या हम उसके ऊपर जलता हुआ कोयला रख देतें हैं ? नहीं क्योंकि हम जानते हैं उस कमरे की कीमत उस पलंग की कीमत उस चादर की कीमत उस पर नहीं रखेंगे तो मानुष जन्म भी तो सुन्दर मिला है फिर क्यों इसे गंवाना। तन मन धन इस निरंकार का है यही पहला प्रण भी है, मन बेचे सतगुरु के पास तिस सेवक के कारज रास। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
Comments
Post a Comment