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Showing posts from October, 2021

सदियों बाद फिर दोहराया जा रहा पत्थरों पर कला का इतिहास- वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र सिंह

  कटनी  -   कल्चुरी   काल   के   राजा   कलाप्रेमी   थे।   उनकी   राजधानी   जबलपुर   के   तेवर   में   थी।   वहां   पर   पर्याप्त   मात्रा   में   पत्थर   उपलब्ध   था   लेकिन   वह   पत्थर   शिल्पकारी   के   लिए   सही   नहीं   था।   इसी   के   चलते   कल्चुरी   राजाओं   ने   कटनी   के   कारीतलाई   व   बिलहरी   को   अपना   कला   केन्द्र   बनाया।   कटनी   के   सेंड   स्टोन   पर   बिलहरी   व   कारीतलाई   में   कलाकृतियों   का   निर्माण   कराया   जाता   था   और   यहीं   से   किलों ,  मंदिरों   आदि   को   सजाने   का   कार्य   किया   जाता   था।   कल्चुरी   शासन   के   बाद   से   एक   लंबा...

जिले के सैदा गांव के पत्थरों से तैयार किया गया था बांधा-इमलाज का राधाकृष्ण मंदिर

शानदार नक्काशी व पुरातन कलाकृति का है अद्भुत नमूना कटनी -  कटनी का पत्थर पुरातन समय से शिल्पकला के अनुरूप रहा है। जिले ही नहीं बल्कि आसपास के कई ऐतिहासिक स्थल ,  मंदिरों में आज भी कटनी के पत्थर पर की गई शानदार नक्काशी लोगों का आकर्षण है। पत्थर के शिल्पकला के अनुरूप होने का कारण था कि कल्चुरी काल के राजाओं ने कटनी के बिलहरी व कारीतलाई में अपने कला केन्द्र बना रखे थे। कुछ इसी तरह की कलाकृति का नमूना है जिले के बांधा-इमलाज का श्रीराधाकृष्ण मंदिर। लघु वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की दीवारों ,  छतों में शानदार नक्काशी देखने को मिलती है और उन कलाकृतियों को जिन पत्थरों पर कलाकारों ने उकेरा है ,  वह जिले का ही सेंड स्टोन है।              गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर में लगाया गया पत्थर रीठी तहसील के ग्राम सैदा से लाया गया था और उसे बैलगाड़ी के माध्यम से मजदूर लेकर आए थे। जिसे बिलहरी निवासी शिल्पकार बादल खान ने अपनी शिल्पकला से सजाया था। मंदिर में सामने की ओर पिलर व दीवारों लगे नक्काशीदार पत्थर आज भी लोग...