निरंकारी संत समागम - दिव्य अमृत वाणी और हर्षोल्लास के साथ अपनी-अपनी झोलियां रहमतों से भर कर अपने घरों की ओर आते हैं, हम सबका आध्यात्मिक विकास, आध्यात्मिक तरक्की हो सके, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में महात्मा मनीषा मंगलानी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) जो कुछ भी हमारे आसपास है, वह कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी वजह से हमारा साथ छोड़ देंगे, लेकिन साथ केवल और केवल यह परमपिता परमात्मा रहेगा, इस जहान में भी और उस जहान में भी। संसार से जो प्रीत है, वह टेंपरेरी है, लेकिन इस परमपिता परमात्मा से जो प्रीत है, वो परमानेंट है। वह हमेशा हमारे साथ रहेगी। जो इस परमपिता परमात्मा से प्रेम कर लेते हैं, इससे इश्क कर लेते हैं, वो इस संसार से अपना नाम धन का भंडारा भरपूर करके रुखसत होते हैं तो इसीलिए साध संगत जी, इसमें हुजूर हमें चेतनता बक्श रहे हैं कि संसार से जो प्रीत है, वह बंधनों का कारण बनेगी, लेकिन निरंकार से जो प्रीत है, वह मुक्ति देगी, वह लोक सुखी - परलोक सुहेला करेगी, आवागमन के चक्कर से निजात दिलाएगी। मानुष जन्म अमोलक है, होत ना बारंबार, तभी इसमें फरमाया गया कि यह सोने का वक्त नहीं है, ऐ बंदे तू जाग जरा, जन्म-जन्म से जिससे बिछड़ा उसके संग तू लाग जरा। इसमें हुजूर हमें यही समझा रहे हैं कि हमने इस परमपिता परमात्मा से प्रीत करनी है, बाकी तो यह संसार नश्वर है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में हरदेव वाणी के शब्द पर महात्मा मनीषा मंगलानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
साध संगत जी, जो सुख, चैन, आनंद आप संतों महात्माओं के संग है या जो इस परम पिता परमात्मा का जिक्र, इसकी चर्चा आप संतों के साथ होती है, वो संसार में हम कहीं भी चले जाएं, वो दुर्लभ है। एक भगत एक गुरसिख इसलिए इस परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करता है कि प्रभु, ज्यादा से ज्यादा मेरे जीवन में संतों महात्माओं का संग बख्शना, ताकि ज्यादा से ज्यादा मैं तेरा जिक्र कर पाऊं और तेरा सिमरन करते हुए इस जीवन के सफर को तय कर पाऊं। संपूर्ण हरदेव वाणी के इस शब्द के माध्यम से सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज सतगुरु की महिमा का वर्णन कर रहे हैं कि अभी पिछले डेढ़ घंटे से हम सब ने सतगुरु के प्रति वो हर्षोल्लास, वो उमंग, वो तरंग, वो चाह, वो लगन जाहिर की, अपना प्रेम जाहिर किया कि हम सब समागम में भी जा रहे हैं कि वो समागम का एहसास तो अभी से ही हो रहा है। आज का ये दिन भी मुबारक है कि समागम वाली फीलिंग आ रही है।
सतगुरु के पावन पवित्र चरणों में इनके सानिध्य में जब हम कुछ दिन एक सकारात्मक ऊर्जा हमें मिलती है कि जहां पर अनेकों-अनेकों स्थान से, देश से, विदेश से संत महात्मा यहां आते हैं। एक दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। वो दिव्य अमृत वाणी का और फिर उसी हर्षोल्लास के साथ अपनी-अपनी झोलियां रहमतों से भर कर अपने-अपने घरों की ओर आते हैं, ताकि हम सबका आध्यात्मिक विकास, आध्यात्मिक तरक्की हो सके और यही तो हम सब का मकसद भी है कि अन्य जितनी भी चीजें हैं, परमात्मा के द्वारा जो हम सबको बख्शी गई हैं, वो तो केवल और केवल जीवन को सरल बनाने के लिए है, सुचारू रूप से चलाने के लिए है, लेकिन हम सब का केवल और केवल एक ही मकसद कि इस परम पिता परमात्मा की भक्ति करके अपना लोक सुखी, परलोक सुहेला करना।
साध संगत जी, 1948 की बात है, 1947 में जब विभाजन हुआ तो सतगुरु बाबा बूटा सिंह जी महाराज और शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज के द्वारा जो संगत स्थापित की गई थी सिंध, बलूचिस्तान में, पेशावर में, रावलपिंडी में, तो बंटवारे की वजह से ये संगते बिखर गई और देश के अनेक कोनों-कोनों में जाकर बस गईं। और इसी वक्त शहंशाह जी भी दिल्ली आकर बस गए और वहां पर अपनी अमृत वर्षा करने लगे। तभी, सतगुरु शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी और जगत माता बुद्धवंती जी के सुपुत्र बाबा सज्जन सिंह जी, जो कि विशाल हृदय के और प्रेम भरे हृदय वाले थे एक दिन शहंशाह जी के चरणों में जाकर उन्होंने प्रार्थना की कि क्यों ना एक सालाना, एक वार्षिक संत समागम किया जाए कि जो संगत आपके दर्शनों के लिए वंचित रह गई है, आपके अमृत वचनों को सुनने के लिए तरस रही है, तो ये जो हम सालाना, ये जो वार्षिक संत समागम करेंगे, इसमें संत महात्मा दूर-दूर से एक स्थान पर आएंगे, आपके दर्शन भी करेंगे आपके दिव्य वचनों को, आदेशों को, उपदेशों को भी श्रवण करके जीवन संवार पाएंगे और वहीं, यहां पर एक मिल-वर्तन, एक दूसरे से आपसी मेलजोल भी होगा। शहनशाह जी को उनकी यह बात अच्छी लगी, लेकिन साथ ही कुछ ही समय बाद बाबा सज्जन सिंह जी की सेहत, तबीयत, अचानक खराब हो गई और उन्होंने इस नश्वर शरीर को छोड़ दिया। उनके शरीर छोड़ने के बाद 27वें दिन जब उनका श्रद्धांजलि समारोह रखा गया, तो शहनशाह जी ने फरमाया कि बाबा सज्जन सिंह जी उम्र में भले ही 16 वर्ष के थे, परंतु उनकी सोच, उनके विचार, बाबाओं वाले थे उनकी आत्मा निराकार में समा गई। एक किरण सूरज के साथ इकमिक हो गई तो जब संत महात्मा इस संसार से रुखसत होते हैं, तो शोक नहीं मनाया जाता, अपितु खुशी मनाई जाती है कि इन्होंने अपने मानुष जन्म को सफल करके इस संसार से इस निराकार में एक मेव हो गए। जीते जी तो वह इस निराकार में, इस ब्रह्म में लीन थे ही, लेकिन शरीर छोड़ने के बाद भी यह इस निराकार में लीन हो गए। तो ये जो श्रद्धांजलि समारोह है, इसे संत निरंकारी मिशन का पहला वार्षिक संत समागम घोषित कर दिया गया और फिर आगे उन्होंने कहा कि यही समागम जो है सितंबर, अक्टूबर, नवंबर के महीने में सतगुरु के द्वारा जो है, यह समागम रचा जाएगा।
यही सृष्टि का रचनाहार है, हम सबका पालनहार है। हम सबको सब कुछ देने वाला केवल और केवल यही निरंकार है। जब मान लिया कि यही सब कुछ है, यही एक है और फिर उसके बाद, साध संगत जी, वो भक्ति, वो इसके पीछे श्रद्धा भाव, वो झुकाव, वो समर्पण, एक गुरु सिख जो है समर्पित होकर इस परम पिता परमात्मा की भक्ति करता चला जाता है, लेकिन यह सौभाग्य केवल और केवल हम मनुष्यों को ही प्राप्त है। हम संसार में अन्य प्राणियों से कह लें कि आप सेवा कर लो, सिमरन कर लो, सत्संग कर लो। सतगुरु की शरण में जाकर इस राम राम की लगन कर लो, यह हो ही नहीं सकता। लाख कोशिश कर लो अन्य जीव-जंतुओं, प्राणियों को हम सारी एक्टिविटी सिखा सकते हैं, सब कुछ उनसे करा सकते हैं, लेकिन इस परम पिता परमात्मा का बोध हासिल वो नहीं कर सकते। उसके लिए मनुष्य जन्म ही है। एक ऐसा माध्यम, जिन श्वासों की पूँजी रहते, इस मनुष्य जन्म में ही इस परम पिता परमात्मा का बोध हासिल करके इसकी भक्ति की जा सकती है। संपूर्ण हरदेव वाणी में सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी ने फरमाया कि राज बिना राजा कैसा, धन के बिना धनवान कहाँ, विद्या के बिना विद्वान है कैसा ? बल के बिन बलवान कहाँ। फल के बिना है पेड़ कैसा, रस के बिन है फल कहाँ। फिर आगे फरमाते हैं कि छत के बिना मकान कहाँ है, बिना नमक के पकवान कहाँ। आगे फरमाते हैं कि ना चमके तो बिजली कैसी, न बरसे तो बादल कैसा। फिर आगे फरमाते हैं कि बिना धार की तलवार है कैसी, बिना तलवार के म्यान है कैसा, जल के बिना सरिता है कैसी, खुशबू के बिना उपवन है कैसा। कहे हरदेव की इस मानव का भक्ति के बिन जीवन कैसा।
ऐसा सतगुरु जिनके दर्शन मात्र से हमारे पिछले जन्म के या इस जन्म के जो हमारे जाने-अनजाने कष्ट है, भूले हैं, वो बक्शा दिए जाते हैं। ऐसे सतगुरु के दर्शन से इस रमे हुए राम की जानकारी इसके साथ मिलाप हो जाता है। ऐसे सतगुरु के दर्शन से हमारे ह्रदय से विकार नष्ट हो जाते हैं। विकारों से मुक्ति, मोह मिट जाता है और जब हम ऐसे सतगुरु का दर्शन करते हैं तो हृदय निर्मल, पाक, पवित्र होता चला जाता है। ऐसे गुरु के दर्शन से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, मानसिक और आत्मिक बल मिलता है और फिर आध्यात्मिक तरक्की, आध्यात्मिक विकास की ओर हम बढ़ते हैं। हुजूर यही फरमा रहे हैं कि मनुष्य जन्म बहुत अनमोल है, अमोलक है। इसीलिए, क्योंकि इसी मनुष्य जन्म के रहते, इन स्वासों के रहते ही, ज्यादा से ज्यादा हम इस परम पिता परमात्मा का ज़िक्र कर सकते हैं, इसका सिमरन कर सकते हैं, सेवा कर सकते हैं, सतसंग कर सकते हैं और यही हमें मुक्ति के द्वार से अंदर ले जाएंगे। हां जी। सतगुरु के कारण ही मन में गूंज रहा संगीत है। कहे हरदेव गुरु कृपा से गूंगा गाता गीत है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने भी गीत विचारों के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए।

Comments
Post a Comment