करनी बोल और सोच जब एक हो जाते हैं तब जीवन पूरण हो जाता है, जीवन बदलने के लिए किरदार बदलना होगा, किरदार बदलने के लिए करम बदलना होगा आदतें बदलनी होगी, अपने बोलों को अपनी सोच को बदलना होगा, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में जबलपुर से पधारीं बहन कनक नागपाल जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) जब एक-एक संत से नजर मिल रही थी तो मानों निरंकार के ही दर्शन हो रहे थे। मन में भाव आ रहा था कि करनी बोल और सोच जब एक हो जाते हैं तब जीवन पूरण हो जाता है तो उसी रूप में आप एक-एक संत जो बैठे हो एक-एक संत का जीवन पूरण है एक-एक गुरसिख पूरण है आप सबके भाव पूरण है। ये ज्ञान हमने ले लिया, ज्ञान का दीदार तो कर लिया इस निरंकार का दर्शन तो हमने कर लिया लेकिन क्या वो सिर्फ एक जानकारी रह गई ? क्या उस ज्ञान का उपयोग हम कर पा रहे हैं ? जिस तरह वो शब्द भी लिखे गए हैं कि भीखा भूखा को नहीं सबकी गठरी लाल गांठ खोल देखत नहीं इतवित भयो कंगाल कि इसने किसी की भी गठरी खाली नहीं छोड़ी है किसी को कंगाल नहीं रखा है सबकी गठरी में ये ब्रह्म का ज्ञान है अब देर सिर्फ वो गांठ खोल के उसको देखने की है, उसको इस्तेमाल करने की है, सतगुरु बाबा जी भी अक्सर ये बात फरमाते थे कि एक भिखारी है उसके हाथ सोने का कटोरा लग गया और उसने बहुत संभाल के अपनी झोपड़ी में रख दिया तो तमाम उम्र वो इंसान भिखारी ही रह जाता है, जब उसका अंत समय आता है उसकी झोली खाली रहती हैं, जब देखते हैं कि इसके पास तो ये सोने की कटोरी थी फिर भी ये भीख मांग के अपना गुजारा करता रहा तो यही अरदास कि सतगुरु ने ये निरंकार का ये ब्रह्म का पूरण ज्ञान बक्श दिया है कहीं अभी भी हम दुनिया से यहां वहां से भीख मांग के तो नहीं जी रहे हैं। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में जबलपुर से पधारीं बहन कनक नागपाल जी ने उपस्थित विशाल संख्या में साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा बहुत कठिन कहा जाता है भक्ति को कितने ही ग्रंथो में हमने पढ़ा है किस तरह कितनी तपस्या उस रूप में कठोर श्रम करके इसका दीदार होता था। आज इतने सहज में सतगुरु ने हमको चुन लिया है कि बांह पकड़ लीनी अपने जन की गहरे अंध कूप माया, कि हमने तो शायद हाथ बाहर निकाला भी नहीं था सतगुरु ने ये कृपा करी और हाथ से बाजू से खींच कर हमको बाहर निकाला है। अब जो ये ज्ञान बक्श दिया इस ज्ञान का इस्तेमाल इस जानकारी का इस्तेमाल हर पल अपने जीवन में कर पाएंगे क्योंकि ये ज्ञान तो सिर्फ एक introduction है, बता दिया कि ये निरंकार है मिलवा दिया जैसे आज दासी कटनी में आई तो रास्ते भर में बोर्ड लगे थे कि कटनी अभी 90 किलोमीटर है, अब 60 है, अब 32 है, और फिर जब कटनी पहुँच गए तो लिखा आ गया वेलकुम टू कटनी, तो ये जानकारी पूरे रास्ते मिलती रही फिर जब पहुँच गए, अगर तब कहीं हम भूल करें, हम कहां पहुँच गए हैं, ये कौन सा शहर आ गया है, तो वो जानकारी किसी काम की नहीं रहेगी, हर पल उस जानकारी को याद रखना होगा जिस तरह किसी इंसान से मिलवाया जाता है कि इस इंसान का यह फ़लाना नाम है तो मिलवा तो दिया उसको देख लिया उसका नाम पता है उसकी जानकारी पता है कि वो कहाँ रहता है लेकिन अगर उससे कोई रिश्ता कायम करता है चाहे वह दोस्ती का चाहे वह रिश्तेदारी का कायम करना है तो हमने उससे बातचीत बढ़ानी होगी उससे मेल मिलाप करना होगा तो उसी तरह से निरंकार से जितना मिलते रहेंगे उतना इससे रिश्ता हमारा द्रण होता चला जाएगा।
सतगुरु को रिझाने के लिए इसके बंदों को रिझाना होगा तो इससे मिलने के लिए आप सब संतो से ही मिलने आते हैं बार बार आगे गया है सिर्फ ज्ञान लेने से कोई बात न बनने वाली है। बिना कर्म के कभी जिंदगी नहीं बदलने वाली है तो सिर्फ ज्ञान लेना काफी नहीं जब तक उस ज्ञान के साथ करम नहीं साथ जुड़ेगा तब तक आगे पहला कदम नहीं उठ पाएगा। अगर हमने किसी सब्जेक्ट की पढ़ाई करनी हो तो हमने किताबें दुकान से खरीद ली लेकिन जब तक उस किताब को खोल के पढ़ना शुरू नहीं करेंगे तब तक वो ज्ञान हम कहां से अपना पाएंगे, उस जानकारी को हम कहां से समझ पाएंगे तो ये एक एक किताब आप संतो के रूप में ही हम पढ़ते हैं एक एक गुरसिख के ऐसे अनमोल भाव जो दुनियावी किसी किताब में नहीं मिलेंगे। मन कोई physical body नहीं उसका कोई रूप नहीं उसका कोई आकार नहीं लेकिन फिर भी मन एक ऐसी वस्तु है, वस्तु भी नही कह सकते हैं सिर्फ वो मानने की शक्ति है, हमने मान लिया वो हमारे मन में बस जाती है और जिस बात को मान के भी नहीं माना तो हमारे मन से उतर जाती है। आप सब संतों के वचन मन में बस जाएं सतगुरु की शिक्षाएं मन में बस जाएं ज्ञान करम में ढल जाए तो जीवन का श्रृंगार रहे लेकिन यहाँ एक बात और जोड़ दी गई कि ज्ञान को करम में तो ढ़ालना है लेकिन करम में तब ढल पाएगा जब यह ज्ञान हमारे ध्यान में रहेगा जब हमारे मन में रहेगा क्योंकि दासी ने कभी पढ़ा था कि जो हम सोचते हैं हम वो बोलते हैं जो हम बोलते हैं वो हमारी आदत बन जाती हैं, जो हमारी आदत बन जाती हैं वो हमारा किरदार बन जाता है और हमारे किरदार से हमारा जीवन बन जाता है, अगर जीवन बदलना है तो रिवर्स इंजिनियरिंग जिसको कहते हैं कि उल्टी गिनती करनी होगी, जीवन बदलने के लिए किरदार बदलना होगा, किरदार बदलने के लिए करम बदलना होगा आदतें बदलनी होगी, आदत बदलने के लिए अपने बोलों को अपनी सोच को बदलना होगा।
उन्होंने कहा दुनिया में तो देखते हैं हम कुछ बोलते हैं कुछ करते हैं तब उस रूप में एक जजमेंट हो गया है कि ये इंसान इस तरीके का है यह इंसान इस तरह से है लेकिन यह निरंकार अंग संग है हमारे हमको कर्म करने की भी जरूरत नहीं जिस पर हमारे मन में कोई भाव आ गया उसी पर जजमेंट हो गया तो सोच भी इनके मुताबिक, जो हमारे मुख से बोल निकल रहे होंगे वो इनके मुताबिक होंगे जैसे गीतों में भी आता है कि मिला है जिनको सतगुरु पूरा उनकी वाणी बदल गई। सतगुरु तो पूरा है यह निरंकार तो पूरा है आप साध संगत भी पूरे हो, अपूर्णता अगर है तो वह मुझमे है सिर्फ और सिर्फ मुझमे, तो वही बात कि ज्ञान को करम में उतारना होगा अपने ध्यान में बसाना होगा, पल पल जैसे वो भी लाइन आती है कि हर स्वांस में हो सिमरन तेरा यूं बीत जाये जीवन मेरा, बहुत ऊंची अवस्था है पता भी नहीं चलता कब साथ आती है कब चली जाती है, कोई एफर्ट नहीं करना पड़ता, कोई करम नहीं करना पड़ेगा हर पल इसको याद करने के लिए हर पल में इसका ध्यान रखने के लिए।
असल में इसको पाना है इसकी जानकारी इसकी पहचान तो हो गई अब उसके बाद क्या ? अक्सर कहा जाता है किसी की शादी होती है तो वो दो शरीर और एक रूप हो जाते हैं तो इसी तरह जब ये ब्रह्म का ज्ञान मिलता है तो हमारे रूप और इस रूप राणी की शादी भी तो होती है। बीच में सिर्फ ये शरीर का बंधन जब तक एक गुब्बारे में हवा भरी हुई है तब तक वो हवा अलग है, उसके अंदर की और उस गुब्बारे के बाहर की जिस पर एक सुई चुभ जाती है और वो गुब्बारा फट जाता है तो वो हवा एक ही हो जाती है। पहले ही प्रण में जब हमने कह दिया, हमने ये प्रण ले लिया कि तन, मन, धन इसका है तो फिर तो मेरा कुछ बचा ही नहीं, कुछ मेरा कहने को भी नहीं बचा कि मन बेचे सतगुरु के पास तिस सेवक के कारज़ रास। जहां वो चाय की बात आ रही थी तो एक बात ध्यान में आई कि पानी में चाय बनाने के समय दूध भी डलता है चीनी भी डलती है चाय पत्ती भी डलती है और वो दूध अपना कलर डाल देता है चीनी मिठास घोल लेती है लेकिन अंत में सिर्फ चाय पत्ती बचती है क्योंकि वो अपने आपको ख़तम नहीं कर पाती क्योंकि वो अपने आपको मिला ही नहीं पाती अपने आपको इसमें लीन ही नहीं कर पाती तो वो अंत में डस्टबिन में ही जाती है।
एक महीने से वो अनाउंसमेंट हुई समालखा के मैदानों में कि सतगुरु मेरा N.Y.S. रच चुका है, हमने सिर्फ और सिर्फ जिस तरह उन्होंने रचा है बिना मन और बुद्धि को बीच में लाए बस सेवा करते जाना है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचारों के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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