जाने कितने बच्चे बच्चियों के माता - पिता का पैसा बचेगा जो अन्य जरूरी कार्यों में खर्च किया जा सकेगा, जिसके पास नही वो भी कर्जों से बच जाएगा, सकारात्मक परिवर्तन वरिष्ठ जनों द्वारा लाए जाने की अपेक्षा
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) माधवनगर - हेमू कालाणी वार्ड से पूर्व पार्षद रह चुके राजू माखीजा ने रविवार 30 नवंबर की शाम सोशल मीडिया के एक ग्रुप में पोस्ट डाल कर बताया कि, समाज के वरिष्ठ समाजसेवी जनों द्वारा समाज की चिंता करते हुए शादी एवं गर्मियों में हो रही विसंगतियों को दूर करने के लिए पूज्य पंचायत शांतिनगर के नेतृत्व में कुंदन दास स्कूल प्रांगण में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें सभी ने अपनी अपनी राय दी और विचार विमर्श किया और इसमें पूज्य पंचायत कटनी, पूज्य पंचायत माधव नगर, पूज्य पंचायत शांति नगर, एम ई एस कालोनी पूज्य पंचायत, सिधू नौजवान मंडल, सिंधु सेवा समिति, झूलेलाल वरुण भवन, झूलेलाल सेवा समिति माधव नगर, नवयुवक झूलेलाल सेवा समिति शांति नगर के प्रतिनिधि शामिल हुए। हालांकि इस बैठक की विस्तृत जानकरी तो उपलब्ध नही है लेकिन शादियों में बारात पहुँचने का समय तीन बजे निर्धारित किया है व प्री वेडिंग शूट न करने और पगड़ी रस्म में भोज बंद करने की बात सामने आई है। खैर फिलहाल इसे शुरुआत भर ही मान सकते हैं ऐसे में कुछ सुझाव और सवाल भी प्रबल सृष्टि लेकर आया है।
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| कुन्दनदास स्कूल में आयोजित बैठक |
सामूहिक सादे विवाह यह एक ऐसा सामाजिक और उत्कृष्ट कृत्य है जिसमें समाज अगर सहभागिता कर आगे बढ़े तो निश्चित ही यह एक मील का पत्थर साबित होगा और सही मायने में रस्मों रिवाजों में समाज के भविष्य को सुंदर गति से एक नया आयाम भी दे सकेगा। पर क्या यह संभव लगता है ? अगर समाज के आम व्यक्ति से ही यह पूछ लो तो सामने से जवाब आता है कि हाल के बीते वर्षों में समाज के ही लोग अपने पारिवारिक विवाहों को शहर से अति दूर की होटलों में सम्पन्न करते आए हैं, जहां नित्य नई नई रस्में जिसमें अब पूल पार्टी भी शामिल है इसे बड़े ताम झाम से संपन्न करते आए हैं, जबकि दो दशक पूर्व तक ही माधव नगर में ही कई स्थापित सामाजिक धर्मशालाएं जिन्हें पूर्व में समाज में दूरदर्शी सोच रखने वालों ने सहभागिता से निर्मित कराईं थी, जिसमें समाज का हर वर्ग विवाह और अन्य आयोजन सामाजिक मेल मिलाप से खुशी खुशी सम्पन्न कर लेता था। तब दोपहर में ही स्वरूचि भोज में शहर भर से मेहमान शामिल होते फिर मेहमान मेजबान दोनों फ्री।
आजकल समाज में "पेसो आ पेसो आ" गाना खूब बजाया जाता है यह पैसा बड़ी-बड़ी होटलों में आयोजित कार्यक्रमों में खूब खर्च किया जाता है, स्थानीय स्तर पर ही 20 - 25 लाख सिर्फ होटल में आयोजित शादियों में खर्च हो रहा है और धर्मशालाएं तो जैसे धूल खा रही हैं जो सिर्फ पगड़ी रस्म के लिए ही इस्तेमाल की जा रही है और यहां शादी विवाह सिर्फ समाज का आम वर्ग ही करता है। समाज के चिंतकों की चिंता इस ओर है अथवा नही यह अभी तक तो प्रमाणित हुआ नजर तो कभी आया नही है। खैर अब भी अगर समाज एक मत होकर सादी शादियां करें जो अन्य समाजों में भी उदाहरण बन सके और सामूहिक शादियों की दिशा में भी आगे बढ़े तो क्या यह समाज में सभी के लिए उचित नहीं होगा ? जाने कितने बच्चे बच्चियों के माता पिता का पैसा बचेगा जो अन्य जरूरी कार्यों में खर्च किया जा सकेगा या जिसके पास नही वो भी कर्जों से बच जाएगा।
उधर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सामाजिक सरोकार, समरसता और सादगी की मिसाल प्रस्तुत करते हुए अपने छोटे पुत्र का पाणिग्रहण संस्कार उज्जैन में हुए सामूहिक विवाह समारोह में संपन्न कराया। योग गुरू स्वामी रामदेव ने 21 जोड़ों के सामूहिक विवाह संस्कार कार्यक्रम का संचालन किया। स्वामी रामदेव ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ऐसी मिसाल प्रस्तुत की है। देश के प्रभावशाली, राजनीतिक और धनी व्यक्तियों के लिए यह एक अनुकरणीय पहल है। विवाह की इस प्रक्रिया के अनुसरण से शादियों में होने वाले अपव्यय को रोका जा सकेगा और मध्य तथा निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों को प्रेरणा मिलेगी। उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी इसलिए मैं चाहता हूँ कि यह सिलसिला अगर हम सभी सामाजिक दृष्टि से अपनालें तो क्या इसमें बुराई है ? बुराई तो इसमें कुछ है ही नहीं हर लिहाज से इसमें अच्छा ही अच्छा है।
हाल के वर्षों में बेकार के रीति रिवाज जिसमें फूहड़पन भी अब शामिल होते जा रहे हैं उन्हें ही शादियों का पैमाना मान लिया गया है, क्या हमारे बुजुर्गों की यही सोच थी कि हमारे आने वाली पीढ़ी ऐसा पैसा कमाएगी कि वह बस सिर्फ अनावश्यक कार्यों पर ही खर्च करेगी तो सवाल उठना लाजमी है कि फिर वह सामाजिक चेतना कहां खो गई जो सारे समाज को एक सूत्र में बांधती थी। एक जैसे शादी समारोह, एक जैसे अन्य संस्कार कार्यक्रम तो क्या यह उचित नहीं है ? समाज में कुछ अच्छे सकारात्मक परिवर्तन वरिष्ठ जनों द्वारा लाए जाने की आम समाज जन की अपेक्षा है। अगर वरिष्ठ जन सादी शादियां, सामूहिक शादी में अपनी हिस्सेदारी निश्चित करें तो यह पूरे समाज के लिए अच्छा होगा और दूसरे समाजों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। ऐसा माना जाए कि कुन्दनदास स्कूल में आयोजित बैठक एक शुरुआत भर है इसे क्रमशः आगे बढ़ाया जाए वैसे यह स्वागत योग्य कदम तो है।

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