सतगुरु वो ज्ञान का सागर है, जिसमें जो संत डुबकी लगाता है वो मोती चुन के लाता है, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में 15 अगस्त को आयोजित मुक्ति पर्व में नैनपुर से पधारीं बहन सुनीता महलवंशी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) साधसंगत जी, परमात्मा माता है, पिता है, बंधु है, सखा है, इसके आगे अरदास करें, प्रार्थना करें, मेरे मालिक, भक्ति और संतों का संग और सत्संग सदा देते रहना, यही अरदास है, यही प्रार्थना। अभी हम सब मिल के, संत निरंकारी मिशन द्वारा 15 अगस्त को मुक्ति पर्व के रूप में यह दिन आयोजित किया जाता है। यह आयोजन युग पुरुष बाबा अवतार सिंह जी महाराज, जगतमाता बुद्धवंती जी, ममतामयी राजमाता जी, युग निर्माता माता सविंदर हरदेव जी की दिव्यता, विनम्रता इनको याद किया जाता है। उनके साथ-साथ उन सभी सत्य के लिए समर्पित संत महात्मा, उनका तप त्याग वो भी याद किया जाता है। यह पर्व ऐसा है कि इसमें पुराने संत महात्माओं को भी याद किया जाता है जिन्होंने तप, त्याग, तपस्या, साहस, बलिदान, संघर्ष, अपना जो कुछ भी दिया है, ये मिशन को दिया है। ऐसे पुरातन संत महात्माओं को भी याद किया जाता है। हम बड़े भाग्यशाली हैं, वो पुरातन संत महात्माओं ने तो इतना कष्ट सहा है उन्हें प्यार नहीं मिलता था फिर भी वो सत्य के प्रचार के लिए दौड़े-दौड़े जाते थे। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में शुक्रवार 15 अगस्त को आयोजित मुक्ति पर्व में नैनपुर से पधारीं बहन सुनीता महलवंशी जी ने पवित्र हरदेव वाणी के शब्द पर उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
साध संगत जी, प्रधान लाभ सिंह जी की बात आती है, हर एक, ऐसे अनेक-अनेक संत महात्मा जिन्होंने इतना तप किया, इतना सहा, उनका साहस था, उनकी विनम्रता है कि नम्रता है इनका सब कुछ हमें सीखने को मिल रहा है। जब कोई चीज सहजता में मिलती है ना, तो उसकी कदर नहीं होती। जो चीज सहजता में मिलती है, बिन पैसे की मिलती है तो उसकी कदर नहीं होती। जैसे उदाहरण, हम लोग वैक्सीनेशन करते हैं, टीकाकरण करते हैं बुलाने में भी बच्चे नहीं आते, माता-पिता नहीं आते। क्यों ? क्योंकि फ्री में लग रहा है और वहीं जब शहरों में रहते हैं, तो ₹1500- ₹2000 देके वो टीकाकरण किया जाता है। आओ, अरदास करें। ये सहजता में मिला है, ये सरलता में मिला। ऐसे सतगुरु, ऐसे परम पिता परमात्मा हमें कभी नहीं मिलेंगे।
साध संगत जी, संत प्रधान लाभ सिंह जी की बात याद आ रही दासी को। एक बार वो प्रचार में निकले तो किसी बहन के यहां भोजन था। किसी संत ने कह दिया, "बहन, भोजन देख के बनाना, प्रधान जी नमक मिर्ची कम लेते हैं।" प्रधान जी यह सुन लिए, कहते हैं, "महापुरुषों, किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना हमें। हम यहां नमक मिर्ची का स्वाद लेने नहीं आए हैं। हम सत्य का प्रचार करने आए हैं।" साध संगत जी, ऐसे थे संत महात्मा। हम बड़े भाग्यशाली बहुत भाग्यशाली हैं। अपने आप में विचार करो, मनन करो, शुक्राना करो कि मेरे मालिक, एक क्षण में, हमें ये रमे राम को सतगुरु की कृपा से मिल गया।
हरदेव वाणी बाबा जी ने लिखी, संपूर्ण और पवित्र वाणी में बाबा जी सुंदर अक्षर अनंत है। सतगुरु की महिमा, अनंत है उपकार। सतगुरु को ही शीश नवाऊं, नित जाऊं बलिहार, नित जाऊं बलिहार। मेरे मालिक, तेरे को मैं नित बलिहार जाऊं। तेरी भक्ति में अगर मैं अपना शीश भी दूं तो सस्ता है। कितने उपकार कर रहे हमारे ऊपर। अभी देख रहे हैं आप ? क्या उन्हें आराम की जरूरत नहीं है ? क्या उन्हें सोने की जरूरत नहीं है ? क्या उन्हें धूप, प्यास, गर्मी नहीं लगती ? सब कुछ, लेकिन किसके लिए ? हमारे लिए। हमारे लिए, कितने दौड़े-दौड़े दर्शन देने के लिए चले आ गए हैं सतगुरु, साधसंगत जी, सतगुरु का स्थान तीर्थ के समान कहा गया। अगर आप सतगुरु के चरणों में आ जाओ तो तीर्थ से बढ़कर स्नान हो जाएगा आपका। सतगुरु वो ज्ञान का सागर है, जिसमें जो संत डुबकी लगाता है तो वो मोती चुन के लाता है। अब ये शिष्य के ऊपर है कि वो मोती चुनता है कि कंकड़ चुनता है।
साध संगत जी, सतगुरु का स्थान संसार में ईश्वर से भी बड़ा है। तभी तो कह दिया कि, "गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागो पाए, बलिहारी गुरुदेव की गोविंद दियो बताएं।" उन्होंने मुझे परमात्मा का पता बता दिया। अब मैं इनको बार-बार बलिहार जाऊंगा। फिर कह दिया, परम तत्व का बोध करा दिया मेरे जीवन में, और भ्रम जाल से मुक्त किया। परम तत्व कौन हैं ? आद सच, जुगाद सच, है भी सच, नानक होसी भी सच, ये हैं परम तत्व। इसका बोध करा दिया मालिक ने। साध संगत, जिधर देखो, उधर तू है, और हर शय में जलवा हु ब हु है। ऐसे परम तत्व का बोध करा के मेरे मन के भ्रम जाल को इसने मिटा दिया। नहीं तो भ्रमित है दुनिया, सारी दुनिया तो भ्रम में पड़ रही है कि मैं जीवन में आई हूं तो मैं ये करके जाऊंगी। मैंने ये किया, मैंने वो किया, मैं न करूँ तो ये न हो, ये भ्रम तो है हमारा। भ्रम को समाप्त कर दिया कि तू इस दुनिया में एक मुसाफिर के समान है। आया है तो एक मुसाफिर के समान आया। किसी संत ने कह दिया, "किस मद में तू सोया बावरें ? कौन यहां पर रहना है ?" ओ सोने वाले जाग जा, संसार मुसाफिर खाना है। क्या लेकर के आया जग में ? क्या लेकर के जाएगा ? मुट्ठी बांधे आया जग में, हाथ पसारे जाएगा। बस ले के जाएगा तो ये भक्ति। ये संतों का संग, ये सत्संग, ये सेवा, ये सिमरण है। साध संगत जी, धन-दौलत एक सुई की नोक बराबर भी कोई नहीं ले जाएगा।खाना-पीना, व्यापार, धंधा, रोजगार सब करो, लेकिन इसको मत भूलो, इसकी भक्ति करो। कि परमात्मा बहुत दयालु है। इसकी दया का कोई पार नहीं है। यह हमारे अवगुणों को बख्श देता है। कहते हैं ना: "यह एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनिआध, तुलसी चर्चा नाम की, कटे कोट अपराध।" बस चर्चा करके तो देखो, परमात्मा कहते हैं, "तू मेरे लिए एक कदम चल के तो देख। तेरे लिए मैं 100 कदम ना चलूं, तो कहना। तू मेरे लिए खर्च करके तो देख, तेरे लिए कुबेर के भंडार ना भरूं तो कहना। तू मेरी चर्चा करके तो देख, तुझे मूल्यवान ना बना दूं, तो यह मूल्यवान बना रहा है कि परमात्मा बहुत दयालु है।" हाथ जोड़ विनती करू, सुनिए कृपा निधान। हम सबको दीजिए, दाता दया धर्म का दान, दाता दया धर्म का दान। प्यार से कहना, धन निरंकार जी सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओ ने गीत विचार के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही सत्संग उपरांत लंगर प्रसाद की भी व्यवस्था की गई थी।
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