गुरसिख का जीवन माया से होशियार रहता है, हर पल चेतन अवस्था में गुरु की शिक्षाओं को अपनाते हुए जीवन जीता है, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में बहन प्रेरणा रोहरा जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सतगुरु की असीम कृपा से यह शुभ घड़ी यह शुभ वेला गुरसिख के हिस्से में आती है तो वह गुरसिख अपने जीवन को और सजाता है और संवारता है, यह संगत की घड़ियां गुरसिख के जीवन में वह उजाला वह रोशनी लाती है जिससे वह अपने जीवन में और निखार लाता है। आज बहुत बहनों ने भाईयों ने विचार द्वारा गीत द्वारा अपने भाव रखे, वह भाव उस रूप में उन्होंने अपने जीवन में पा करके फिर इसका बखान किया है यह सिर्फ शब्द बोल तक सिर्फ सीमित नहीं थे वह उनके जीवन का बखान था कि किस प्रकार यह ज्ञान उजाला ले करके उनके जीवन में वह रोशनी आई है वह आनंद मिला है। अवतार वाणी की वह लाइनें भी इशारा कर रहीं है कि जिसके अंदर हर हर वस्या हर रंग विचे एक रंग रहे। इस जीवन में रहते हुए माया में किस तरह विचरते हुए भी गुरसिख का जीवन एक रंग में रंगा हुआ, गुरु के रंग में रंगा हुआ जब यह ज्ञान उजाला जीवन में मिल जाता है यह ज्ञान जीवन में उतर जाता है तो वह अवस्था बनती है गुरसिख की, जिस प्रकार एक कमल का फूल होता है, रहता तो कीचड़ में है फिर भी वह उससे न्यारा सुन्दर होता है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर बहन प्रेरणा रोहरा जी ने व्यक्त किए।
उसी प्रकार जीवन को जीते हुए, माया में विचरते हुए वह जीवन अत्यंत सुंदर, वह कमल की भांति, कि वह कीचड़ उसमें लगा हुआ है तो भी वह सुंदरता दे रहा है, उसी प्रकार गुरसिख का जीवन कि जिसके अंदर यह हरि बस गया वह हर हाल में, हर एक अवस्था में चाहे वह दुखवाली अवस्था हो चाहे सुखवाली अवस्था हो, हर पल वह खुशी प्रसन्नता को महसूस करता है, हर पल आनन्द से विचरता है क्योंकि ज्ञान जीवन में आ गया, समझ आ गई, नहीं तो यह जीवन तो कितने दुखों से भरा है, कि यह भवसागर से पार कैसे हुआ जाएगा, कि जहां देखो मनुष्य हमेशा सुख प्राप्ति के लिए प्रयास करता रहता है, सुख ही उसका लक्ष्य होता है, पर वह सुख कहीं न कहीं माया में विचरन करते हुए उसमें ही वह ढूंढता है, उसमें ही प्राप्त करने की चेष्ठा रखता है, पर यह सुख मिलेगा कैसे तब वह गुरसिख जब पूरण सतगुरु की शरण में जाता है, पूरण सतगुरु कृपा करके यह ज्ञान उजाला देते हैं तो यह समझ आती है।
जिस सुख को ढूंढ रहा था गली गली इधर उधर क्योंकि वह समझ नहीं मिली थी इस कारण प्रयास कर रहा था कि कहीं मुझे यहां से सुख मिल जाएं जब अंग संग यह परमात्मा देखा तो मेरा मन आज आनंदित है खुश है। हर वेले मन इससे लगा हुआ हो हर वक्त इसकी याद बनी हो तो वह ज्ञान कहां से मिलता है ? वह गुरू की शरण में जाकर के ही मिलता है। जैसे बिल्ली का बच्चा खेलने में लग जाता है खेलते खेलते उसे समय का पता नही चलता है कि कब उसकी माता वहाँ से निकल गई तब बच्चे को याद आता है कि मैं तो अपनी माता के साथ आया था फिर वह चीख उठता है चिल्ला उठता है कि काश मेरी मां जल्दी से जल्दी वह मिल जाए, उसी प्रकार इस आत्मा ने भी 84 लाख योनियों के बाद इस शरीर को प्राप्त किया है, सतगुरु ने मुझे मेरे निज स्वरूप से मिला दिया। यह आत्मा भी खुश होती है सतगुरु की कृपा से दीदार हुआ अब जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है कि हर शै में जलवा तेरा हूबहू है।
गुरसिख का जीवन माया से होशियार रहता है हर पल वह चेतन अवस्था में गुरु की शिक्षाओं को अपनाते हुए जीवन जीता है। हर पल गुरु की शिक्षा को आगे रखते हुए वह जीवन में विचरण करता है। हर पल इसका शुक्राना करता है। नाम ओदा आधार रहे, नाम खाये ते नाम ही पहने, नाम ओदा परिवार रहे। हर एक शै में उस एक को देखता है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओ ने गीत विचार के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किए।
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