बिजली बंद हो तो बौखलाइये मत और गुस्सा भी मत कीजिए, क्योंकि इस समय बिजली की लाइन पर होती है कइयों की जिंदगी की डोर...
कटनी ( प्रबल सृष्टि ) बारिश, आंधी, तूफान, गर्मी इन सब मौसमों में आम नागरिक घर की खिड़कियां बंद कर सुरक्षित हो जाता है, लेकिन ठीक उसी समय लाइनमैन ट्रांसफॉर्मर, पोल और तारों के बीच जिंदगी की जंग लड़ रहे होते हैं। बिजली गुल होते ही कंट्रोल रूम से फोन आता है लाइन चालू करो और बिना देर किए वह कर्मचारी ड्यूटी पर निकल पड़ता है। यह भूलकर कि वह भी किसी का पिता है, बेटा है, पति है। परिवार के लोगों के दिल दहल उठते हैं। बच्चे अपने पिता के लौटने की प्रार्थना करते हैं, पत्नी घर के पूजा स्थान में दीपक जलाकर प्रतीक्षा करती है। हर तूफान, हर बरसात, हर लाइन फॉल्ट के साथ बिजली कर्मियों के परिजनों की धड़कनें बढ़ जातीं है।
आसमान में जब घने बादल छाते हैं, तेज हवाएं चलती हैं और अचानक बारिश की मोटी बूँदें गिरने लगती हैं, तो इस मौसम का असर सिर्फ मौसम पर नहीं होता। ऐसे समय में कुछ घरों में साँसें भी थम जाती हैं, दिल की धड़कनें हो जाती हैं। ये वे परिवार हैं जिनका कोई न कोई सदस्य बिजली विभाग में लाइनमैन या तकनीकी कर्मचारी है।
एक की बेटी ने सोशल मीडिया पर एक भावुक अपील की है
"प्लीज... बिजली चली जाए तो गुस्सा न करें, मत चिल्लाएं... हमारे पापा, चाचा, भाई उस लाइन पर काम कर रहे होते हैं। एक छोटी सी गलती उनकी जान ले सकती है। उनके परिवार आपका इंतजार कर रहे होते हैं कि वो सुरक्षित लौटें।"
बारिश, आँधी या तूफान का आम आदमी के लिए सिर्फ भीगना, ट्रैफिक जाम या बिजली गुल होना हो सकता है, लेकिन बिजली विभाग के कर्मचारियों के परिवारों के लिए ये घड़ियाँ डर और बेचैनी लेकर आती हैं। जैसे ही बिजली गुल होती है या ट्रांसफॉर्मर फुंकने की सूचना मिलती है, मोबाइल फोन बजने लगते हैं। विभागीय कंट्रोल रूम से फोन आता है "लाइन खराब है, तुरंत पहुँचो"। और इसके साथ ही घर में बैठे परिजनों की चिंता का सिलसिला शुरू हो जाता है।
"पापा अभी खेतों के पास वाले ट्रांसफॉर्मर पर गए हैं," ये कहते हुए 12 साल की राधिका की आँखों में डर झलकता है। उसकी माँ हर पाँच मिनट में फोन देखती है - "कहीं फोन स्विच ऑफ तो नहीं हो गया? कहीं बिजली का झटका तो नहीं लगा?"
ये चिंता अनायास नहीं है। हर वर्ष अपने यहां कई लाइनमैन ड्यूटी के दौरान करंट लगने या ऊँचाई से गिरने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। इसलिए जब मौसम बिगड़ता है, तो बिजली कर्मचारियों के घरों में दहशत का माहौल बन जाता है।
बिजली घर के एक कर्मचारी बताते हैं कि, "आम जनता को बस ये दिखता है कि बिजली चली गई, लेकिन बिजली वापस लाने में हमारे साथी अपनी जान हथेली पर लेकर काम करते हैं। कई बार गीले पोल, टूटे तार, या गिरते पेड़ भी खतरा बन जाते हैं। फिर भी ये लोग घर नहीं लौटते जब तक लाइन चालू न हो जाए।"
लाइनमैन राधेश्याम की पत्नी कहती हैं, "जब भी बाहर मौसम खराब होता है, में पूजा घर में दिया जला देती हूँ। भगवान से दुआ करती हूँ कि मेरे आदमी को कुछ न हो। अगर फोन देर तक न बजे तो घबराहट और बढ़ जाती है। कई बार ऐसा हुआ है कि उसने ट्रांसफॉर्मर से उतरने के बाद ही फोन किया। तब तक तो साँसें अटकी रहती हैं।"
वरिष्ठ लाइनमैन मो. शमीम बताते हैं, "बरसात में सबसे ज्यादा खतरा रहता है। करंट जमीन में फैल सकता है। पोल फिसलन भरे हो जाते हैं। ऊपर से कंट्रोल रूम का दबाव रहता है 'लाइन चालू करो'। लेकिन लोग ये नहीं जानते कि हम क्या जोखिम उठाकर काम कर रहे हैं।”
आम आदमी के लिए बिजली महज एक स्विच दबाना है। लेकिन पीछे एक पूरी जिंदगी दांव पर लगी होती है। हर मौसम में, हर आँधी में, हर बिजली गुल के बाद सैकड़ों घरों में पूजा के दीप जलते हैं कि हमारे अपनों को कुछ न हो।
इसलिए अगली बार जब बिजली जाए, तो गुस्सा करने से पहले जरा सोचिए कोई अपना उस तार पर झूल रहा है। उसकी सलामती के लिए भी प्रार्थना करिए।
दर असल बिजली कर्मचारियों के लिए भी यह काम आसान नहीं। आँधी में टूटे तारों को जोड़ना, गीले ट्रांसफॉर्मर पर चढ़ना, गड्डों में खड़े होकर पोल थामना यह सब मौत के कुएँ में उतरने जैसा है। लेकिन इन हालात में भी वे अपने डर को पीकर, ड्यूटी निभाते हैं।
साभार - कुमार प्रवीण/नवज्योति/जोधपुर।
Comments
Post a Comment